Monday, June 20, 2016

ओजक भोजः कविता

ई आत्मीयता थिक मृग-मरीचिका
जई पाछू आम लोक सदृश
स्थितिकेे खुआ रहल अछि ओजक भोज
झांपल हाड़ भअ गेल बाहर
वसन तरसँ दअ रहल अछि देखार
ई कर्तव्यक द्वार, कियौ नै पाबैछ पार
गलब अछि सहज मुदा
स्वर्ण बनब कठिन
ई संबंध अछि अनंत
ई आत्मीयता अभिन्न...।

कविताः अंजनी कुमार वर्मा, दाऊजी, सहरसा
हुनक लिखल कविता साभार

Thursday, June 16, 2016

विद्यापति गंगा स्तुति

हमर पुरान मैथिली ब्लॉग हेराय गेल, फेर सँ नव शुरू केलहुं...तअ शुरूआत विद्यापति ठाकुर सँ। गंगा हमरो बड़्ड प्रिय छैथि..

सुमंगले-सुमनोहरे, मातेव-गंगेव च। 

बड सुख सार पाओल तुअ तीरे
छोड़इत निकट नयन बह नीरे
कर जोरि बिनमओ विमल तरंगे
पुन दरसन होए पुनमति गंगे
एक अपराध छेमव मोर जानी
परसल माय पाय तुअ पानी
कि करब जप तप जोग धेआने
जनम कृतारथ एकहि सनाने
भनइ विद्यापति समदओं तोंही
अंत काल जनु बिसरह मोही