ई आत्मीयता थिक मृग-मरीचिका
जई पाछू आम लोक सदृश
स्थितिकेे खुआ रहल अछि ओजक भोज
झांपल हाड़ भअ गेल बाहर
वसन तरसँ दअ रहल अछि देखार
ई कर्तव्यक द्वार, कियौ नै पाबैछ पार
गलब अछि सहज मुदा
स्वर्ण बनब कठिन
ई संबंध अछि अनंत
ई आत्मीयता अभिन्न...।
कविताः अंजनी कुमार वर्मा, दाऊजी, सहरसा
हुनक लिखल कविता साभार
जई पाछू आम लोक सदृश
स्थितिकेे खुआ रहल अछि ओजक भोज
झांपल हाड़ भअ गेल बाहर
वसन तरसँ दअ रहल अछि देखार
ई कर्तव्यक द्वार, कियौ नै पाबैछ पार
गलब अछि सहज मुदा
स्वर्ण बनब कठिन
ई संबंध अछि अनंत
ई आत्मीयता अभिन्न...।
कविताः अंजनी कुमार वर्मा, दाऊजी, सहरसा
हुनक लिखल कविता साभार