Monday, June 20, 2016

ओजक भोजः कविता

ई आत्मीयता थिक मृग-मरीचिका
जई पाछू आम लोक सदृश
स्थितिकेे खुआ रहल अछि ओजक भोज
झांपल हाड़ भअ गेल बाहर
वसन तरसँ दअ रहल अछि देखार
ई कर्तव्यक द्वार, कियौ नै पाबैछ पार
गलब अछि सहज मुदा
स्वर्ण बनब कठिन
ई संबंध अछि अनंत
ई आत्मीयता अभिन्न...।

कविताः अंजनी कुमार वर्मा, दाऊजी, सहरसा
हुनक लिखल कविता साभार

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