Sunday, July 17, 2016

जगदीश चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’ के दू टा गजल

जगदीश चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’

२ टा गजल            
 (१)
चान सुरुज के नक़ल करत ओ
दुनियांमे एसगरहु   चलत ओ

जाहि डगरपर नेह   फुलाइछ
ततहि  प्रेमसं पएर धरत  ओ

लड़त ने कहियो खेतक खातिर
अपन विकारक संग लड़त ओ

धनक लेल अगुतायल  दुनियां
मुदा बहरकेर  संग  रहत  ओ

मगन रहत ओ गगन देखिक’
प्रेम करत त  गजल कहत ओ

दनदनाइत  रहतीह  मैथिली
सभठाँ  जय-जयकार करत ओ
(सरल वार्णिक बहर/ वर्ण-१३ )

           (२)
अपने गलती गना रहल छी
भरि दुनियांकें जना रहल छी

खाली घैल बनल छी हम सभ
बेर-बेर ढनमना    रहल छी

कबाछु लगाक’ पूछि रहल छी
किए एना भनभना रहल छी

पएर पकड़िक’ कहै छी दौडू
कथीले’ हमरा कना रहल छी

आसन-प्राणायाम ने बिसरल
तें एखनो दनदना रहल छी
हमरे बलपर देखलौं दिल्ली
आ हमरे उल्लू बना रहल छी

रहै ने कोनो दुःख धरतीपर
इश्वरसं हम   मना रहल छी
(सरल वार्णिक बहर/ वर्ण-१२)

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